🙏ऊँ कृष्णाय नमः🙏
विधाता छंद।
(विलोचन में दिखी लाली)
चुनावों ने विचारों का,
दिये थे खोल जब ताले।
ललक ने हस्त फैलाया,
अधर पर थे कई प्याले।
प्रचारों से जगी जनता,
मची थी होड़ पाने की।
प्रधानो की परेशानी,
कहीं जमघट जुटाने की।
(2)
दिखे नेता लगे मेला,
तनी भौहें झुकी नजरें।
मनाने को गए नेता,
प्रजा नाखुश करें नखरें।
लुभाते हैं वही वादे,
करें बातें अभावों का।
कई हारे कई जीते,
नतीजे हैं चुनावों का।
(3)
उड़े पंक्षी खुले नभ में,
समय से नीड़ को जाते।
गए जो जीत कर नेता,
नहीं घर लौट कर आते।
जिये जीवन प्रतीक्षा में,
कभी था जेब जब खाली।
समादर आज पाते ही,
विलोचन में दिखी लाली।
एस.के.पूनम।
सेवानिवृत्त शिक्षक,फुलवारी शरीफ, पटना।
