सरिता-मनु कुमारी

Manu

Manu

सरिता

सरिता !
हां,
मैं हूँ सरिता!
मैं हीं हूँ तनूजा !
परोपकार की जीती जागती मूर्ति,
अपने लिए कुछ नहीं सोचती,
मुझे आता है सिर्फ देना,
सृष्टि के समस्त चर अचर प्राणी,
जब प्यास से व्याकुल होते हैं,
तब अपनी शीतल पानी से मैं,
उनकी प्यास बुझाने वाली,
शैवालिनी, श्रोतस्विनी आपगा, निमग्रा हूँ।
पेड़-पौधे भी मुझसे जल लेकर
हरे भरे रहते हैं।
मेरे बहुत सारे नाम हैं पर
मैं हूँ सिर्फ एक !
मेरे रूप हैं अनेक!
यकीन न हो तो स्वयं देख लो
कूलंकषा, मैं हीं हूँ।
तटिनी, सारंग, जयमाला, तरंगिणी, दरिया, निर्झरिणी, नदी
पत्थर पर भी मैं स्वंय अपनी राह
बनाती हूँ
बहुत संघर्षमयी जीवन है मेरा
मैं दुःख सहकर सबको सुख देती हूँ।
मेरी पूजा भी होती है लेकिन
दुर्भाग्य है कि लोग मुझमें कचरा फेंककर
मुझे प्रदूषित करते हैं।
मैं बहुत सहन करती हूं, लोग मुझे काटकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
प्राकृतिक आपदा के कारण
हुए तबाही का कारण मानव स्वयं है ।
इससे बचो!
हे मानव मेरी रक्षा करो!
मैं सरिता हूँ, मेरी रक्षा करो!
फिर मैं तुम्हारी आजीवन रक्षा करूंगी।

स्वरचित
मनु कुमारी
मध्य विद्यालय सुरीगांव
पूर्णियां, बिहार

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