शरण गहूँ दिन-रात – राम किशोर पाठक

Ram Kishore Pathak

ध्यान लगा मैं कर सकूँ, रचना की बरसात।
भजन करूँ नित मातु की, शरण गहूँ दिन-रात।।

शब्द पुष्प के हार से, करूँ छंद श्रृंगार।
सत्य सृजन करता रहूँ, पथ पाए संसार।।
वाणी नि:सृत हो मधुर, करूँ प्रेम की बात।
भजन करूँ नित मातु की, शरण गहूँ दिन-रात।।०१।।

तेज सूर्य सम हो सदा, मैं दिखलाऊँ राह।
शक्ति सामर्थ्य से सतत, पूर्ण करूँ हर चाह।।
समय सुखद पाऊँ सदा, रहूँ सहज मुस्कात।
भजन करूँ नित मातु की, शरण गहूँ दिन-रात।।०२।।

श्वेत वसन पद्मासना, वंदन बारंबार।
निर्मल कोमल चित गढ़े, मनहर नवल विचार।।
भाव सरस रचना सहज, समरसता की बात।
भजन करूँ नित मातु की, शरण गहूँ दिन-रात।।०३।।

नीर-क्षीर सम मेल का, रचना से दूँ सीख।
मातु दृष्टि अब पड़ गयी, कहूँ सभी से चीख।।
शब्दों की गढ़ श्रृंखला, बनूँ सभी का तात।
भजन करूँ नित मातु की, शरण गहूँ दिन-रात।।०४।।

धर्म-कर्म में लीन रह, सृजन करूँ हर छंद।
भक्ति शक्ति अनुरक्ति से, काट सकूँ यम फंद।।
सन्मुख कोई भी रहे, खाएँ हमसे मात।
भजन करूँ नित मातु की, शरण गहूँ दिन-रात।।०५।।

गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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