रूप घनाक्षरी छंद में
पितरों को तिल जल-
कुशाग्र अर्पण करें,
उनके आशीष से ही, सुखी होगा परिवार।
नदियों या तालाबों में-
खड़े हो तर्पण करें,
सुख शांति हेतु करें, हाथ जोड़ मनुहार।
श्रद्धा में ताकत होती,
सीप हीं बनाता मोती,
प्रार्थना हमेशा तेरी, अवश्य होगी स्वीकार।
जब कर्म विधिवत,
करते अनवरत,
श्रद्धावान भक्त आगे, देवता भी जाते हार।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि‘
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