चलो एक बार फिर जश्न मनाते हैं, आज़ादी का मंत्र और नियमों का है तंत्र गणतंत्र मनाते हैं। राजनीति पर देखो जातीयता हावी है, भाई भतीजावाद और क्षेत्रीयता प्रभावी है,…
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अपना गणतंत्र-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
अपना गणतंत्र अपने गणतंत्र का जगत में मिलकर ही मान बढ़ाएँगे। इसकी बगिया में हम नित एक नया प्रसून खिलाएँगे।। अपने गणतंत्र—– गण है तभी सारा तंत्र है। एकता ही…