टूटती कविता-गिरिधर कुमार

टूटती सी कविता रंग चटखने लगे हैं इसके परेशान है कविता कोलाहल से किसी कोविड से किसी यास से किसी ब्लैक रेड फंगस के संताप से। बिखरती चेतना से सहमती…