मानव यह मानव जीवन पाकर भी नहीं किया कोई परोपकार है। मोह, माया में लिपटा रहा, यह मानव तन बेकार है।। सुन्दर तन अभिमान में फूला रहा दिन रात। किसी…
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मानव-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मानव अन्तर्मन से देख जरा तुम तन यह कितना प्यारा है। बड़े भाग्य से तुझे मिला है। पावन निरुपम न्यारा है।। पीर सदा दीनों की हरना तुमने कभी विचारा है।…