बँटवारा अक्सर ही खींच जाती है तलवारें हो जातें है मुक़दमे बन जाती है सरहदी लकीरें अपने ही घर में अपनो के बीच ज़मीन के चंद टुकड़ों और कागज़ी…
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आभासी दुनिया की मृगतृष्णा-विनय कुमार
आभासी दुनिया की मृगतृष्णा सैकड़ों-हज़ारों दोस्त मिलें फ़िर भी ख़ुद को अपनापन की गलियों में अकेला ही पाया ये इंटरनेट की दुनिया हमें किधर लिये जा रही? ये तो अपनो…
सूरज और जल की चेतावनी-विनय कुमार
सूरज और जल की चेतावनी सुबह, सुबह ! सूरज अपने कर्मपथ को चला कि मार्ग में एक खंडहर मिला कभी जिसे अपनी भव्यता का गुमान था झील का आकार लेता…
बहन की प्रतीक्षा-विनय कुमार
बहन की प्रतीक्षा भोर बेला में खड़ी घर के द्वारे विकल मन बहना नैना पसारे सुनसान सड़क है सुनसान राहें भरी धुंध-छाया में भैया को निहारे आने की आशा विश्वास…