ऐ सुन मेरे भाई मत बोल तीखा,
अभी तो मैंने बस चलना है सीखा।
पूरा है भरोसा स्वयं पर मुझको,
मुकद्दर से मैंने लड़ना है सीखा।
लगा ले चाहे कोई जोर कितना,
दुसाध्य है यारो मुझको जीतना।
तोड़कर रहेंगे हर एक आलान,
मैंने भी तो अब उड़ना है सीखा।
कहता हूँ जो वो मैं कर के रहूँगा,
जुल्मों सितम अब ना हरगिज सहूँगा।
मुझे बैसाखी की नहीं है जरूरत ,
अकेले ही मैंने लड़ना है सीखा।
चाहे जमाना ये कहर बरपाए,
राह में चाहे फूलों को बिछाए।
पड़ता नहीं अब कोई फर्क मुझपे,
शोलों पर मैंने चलना है सीखा।
हटेंगे ना पीछे अब कदम मेरे,
चाहे हो कोहरा जितना घनेरे,
करेंगे एकदिन अम्बर को वश में,
अनंत में विचरण करना है सीखा।
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”
शिक्षिका
मध्य विद्यालय बाँक, जमालपुर