आगाज – दीपक कुमार

कदम तुम्हारी कह रही,

अब पथ का तुम सम्मान करो ।

सुलग रही अग्नि जो भीतर,

अब उसका आह्वान करो ।

               बहने दो अब स्वेद की धारा,

                 सागर का निर्माण करो ।

                भय, आलस्य ये पाश तुम्हारे,

                इन सबका बलिदान करो ।

गर्त तुम्हारी जीवन है,

अगर मन में उत्साह नहीं ।

श्रम तुम्हारी पूर्ण नहीं,

जब तक तुम में कोई आह नहीं ।

                 हिम्मत को धारण करे रहो,

                  नवसृजन का आगाज़ करो ।

                  मन मे जो धुन बैठी है,

                  कल नही वो आज करो ।

यह कविता मेरे द्वारा लिखी गई है। इसमें किसी पुस्तक या सोशल साइट से सहायता नहीं ली गई है। मैं वर्तमान में उच्च माध्यमिक विद्यालय दुधैल देवड़ा (हसनपुर,समस्तीपुर) में विद्यालय अध्यापक (वर्ग 9-10)के पद पर कार्यरत हूं।

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