🙏कृष्णाय नमः🙏
विधा:-मनहरण
(करती हूँ बंदगी)
तरसती है निगाहें,
भरती हैं नित्य आहें,
भूखे पेट तड़पती,मजबूर जिन्दगी।
भाग्य से निवाला मिला,
जूठन भी मिला गिला,
आहार विनाश कर,फैलाए क्यों गंदगी।
कैसे कहूँ भूख व्यथा,
सुने नहीं मेरी कथा,
मुख मोड़ चले जाते,कहाँ है शर्मिंदगी।
मेरी उम्र ढल गई,
चुन-बुन अन्न लाई,
अवशेष दान कर,करती हूँ बंदगी।
एस.के.पूनम(पटना)
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