मनहरण घनाक्षरी श्रीकृष्ण
1:-
हे कान्हा सुनो पुकार, हम आए तेरे द्वार,
विनती करो स्वीकार, भव पार कीजिए।
दे दो आशीष अपार, हो प्यारा यह संसार,
तुम हो प्राण आधार,हमें ज्ञान दीजिए।
लेकर पूजा की थाल, मैं पूजा करूँ गोपाल,
मैय्या यशोदा के लाल,प्रभु ध्यान दीजिए।
तुझमें तेज अपार, तुम सृष्टि के आधार,
मैं हूँ निपट गवार,शरण में लीजिए।
2:-
सृष्टि को तूने रचाया, तुझसे ही जन्म पाया,
फिर अंत में समाया, श्री उद्धार कीजिए।
घट-घट के हो वासी,क्या मथुरा क्या है काशी,
अँखियाँ मेरी है प्यासी,दर्शन तो दीजिए।
नंदबाबा के दुलारे,जन-जन के हो प्यारे,
बन सबके सहारे,उपकार कीजिए।
जो राधा तुझे बुलाए,तुम दौड़े-दौड़े आए,
हम नैन हैं बिछाए,दर्शन तो दीजिए।
छोड़कर घर-द्वार,कर सबसे किनार, पढ़ने आए हम माँ,तप पूर्ण कीजिए। देकर ज्ञान का दान,माँ करो मेरा कल्याण, बन जाऊँ विद्यावान, शरण में लीजिए। जय माँ वरदायिनी, जय ज्ञान प्रकाशिनी, सफल हो तपस्या माँ, ऐसा वर दीजिए। कर सकूँ ऐसा काम,जग में हो ऊँचा नाम, दूँ सदा सत्य का साथ,ऐसा ज्ञान…
भूलकर भेदभाव,दिल में हो समभाव, जीभ पर रहे सुधा,प्रेम रस पीजिए। होठों पर मुस्कान हो,गम का न निशान हो, मीठे बोल बोलकर, सुख सदा दीजिए। जीवन में हो उमंग,चाह का रहे तरंग, न कोई उदास हो,प्रीत रंग रंगिए। कोई न सवाल कर,न ही तू मलाल कर, बाँट कर खुशियों को,…
लोकतंत्र का पावन पर्व, राय अपनी दीजिए। राष्ट्रहित में अवश्य अपना,अंश निश्चित कीजिए। बनिए मत सिर्फ मूक दर्शक, फैसला अब लीजिए। काम करें जो राष्ट्रहित में,मत उसे ही दीजिए।। किन्हीं की बातों में आकर,दिग्भ्रमित मत होइए। और लोभलालच में पड़कर ,पथ खार मत बोइए। खोलिए अंखियों को अपनी, दिल की…
Very nice
one