गुण -अवगुण धर्मिता को ,
प्रकृति भी वरण करती है ।
जहाँ प्रकृति सृजन है करती ,
विनाश बीज भी बोती है ।
सूर्य तम का नाश है करता ,
पर गर्मी भी ले आता है ।
जहाँ चंद्र शीतलता देता ,
सब दिन न उजाला कर पाता है ।
जो केवल दूसरों में अवगुण
की ताका -झांकी करते हैं ।
वे व्यक्ति कभी सफल न होते ,
केवल बीज घृणा के बोते हैं ।
दोष देखने की लत ,
जिसके उर लग जाती है ।
वह अपना दोष देख न पाता ,
निज सहज दोष बढ़ जाता है ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर
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