हैं पग- पग पर रोड़े।
चलते रहना है थोड़े -थोड़े।।
बढ़ते कदम अब रुकने वाले नहीं है।
इरादे मजबूत रखे चले कितने भी कोड़े।।
है बुलंद इच्छाशक्ति पत्थर सी।
चला ले कोई कितने भी हथौड़े।।
मन में उम्मीद ले कर घर से चले।
राह में आने वाले सह लेंगे सब पीड़े।।
लक्ष्य निर्धारित है,मंजिल है दिखता।
अर्जुन की तरह निशाना सीधे पक्षी की आंख पर है पड़े।।
बहुत आयेगे मार्ग से भटकाने को।
रूप बदल – बदल कर कोई मुझे तोड़े।।
पर कमजोर पड़ने वाले कदम मेरे नही।
सर पर धुन सवार है,अब कोई राह ना मोड़े।।
हैं पग- पग पर रोड़े।
चलते रहना है थोड़े -थोड़े।।
धीरज कुमार
उत्क्रमित मध्य विद्यालय सिलौटा भभुआ कैमूर
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