तीव्रगामी चँद्रयान,
अनमोल ध्रुव पर,
विजयी विज्ञान हुआ,अद्भुत था अभियान,
झाँक कर देख रहा,
अतीत के पन्नो पर,
साल दर साल बीते,पाया अब महाज्ञान।
भारती के हर लाल,
चहाता था यही लक्ष्य,
बेमिसाल काम कर,चाँद पर है प्रज्ञान।
स्वर्ण रूप दिख रहा,
हर राह दिप्त किया,
चँदा मामा पास पाया,निकट से किया ध्यान।
एस.के.पूनम
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