टॉफी पा के इठलाना,
पल में मचल जाना,
शैशव की बीती बातें-
हमें याद आते हैं।
बांहों में लिपट कर,
आंचल में छिप जाना,
मां की सुनाई लोरी-
नहीं भूल पाते हैं।
बहन – भाई के बीच,
रोज दिन नोकझोंक,
अपनी ही शरारतें-
सोच सकुचाते हैं ।
चाहता हूं बचपन,
एक बार फिर आए,
बच्चों संग बच्चा जब-
हम बन जाते हैं।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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