जिसको मित्र बनाया है – लावणी छंद गीत
आँख खोलकर इस भूतल पर, ज्यों हमने मुस्काया है।
रिश्ते नाते हमने जग में, खुद पर खुद ही पाया है।।
सबने बतलाया है हमको, खुद से अपना कुछ नाता।
और बड़ों ने सिखलाया जो, उसको तो सदा निभाता।।
कुछ में प्राण समाए रहते, मन को हरपल भाया है।
रिश्ते नाते हमने जग में, खुद पर खुद ही पाया है।।०१।।
दिल में बसते हैं कुछ रिश्ते, कुछ बोझिल सी हो जातीं।
मगर निभाते हर रिश्तों को, कई मुश्किलें भी आतीं।।
अपनी इच्छा से हमने फिर, रिश्ता एक बनाया है।
रिश्ते नाते हमने जग में, खुद पर खुद ही पाया है।।०२।।
हमने उसका किया चुनाव, जिससे दिल के तार जुड़े।
बदल गयी हर अनुभव फिर तो, ज्यों हीं उसकी ओर मुड़े।।
एक अनोखा रिश्ता पनपा, मित्र वही कहलाया है।
रिश्ते नाते हमने जग में, खुद पर खुद ही पाया है।।०३।।
सुख-दुख मिलकर बाँट रहें हैं, बातें करते भी खुलकर।
बोझ हृदय का कम हो जाता, आपस में सब कह सुनकर।।
मित्र मंडली ने कर्मों से, रिश्तों को झुठलाया है।
रिश्ते नाते हमने जग में, खुद पर खुद ही पाया है।।०४।।
संग मित्र जब अपने होता, हम सब-कुछ पा जाते हैं।
मिलता सच्चा मित्र जिसे है, खोटे लगते नाते हैं।।
है मित्र हमारा निधि अनुपम, कान्हा ने सिखलाया है।
रिश्ते नाते हमने जग में, खुद पर खुद ही पाया है।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
