राजगुरु, सुखदेव, भगत,
हँसते हँसते फाँसी के तख्ते पर चढ़ गए।
क्या गजब थी उनकी चेतना,
जो सर्व बलिदान तक वे बढ़ गए।
शोक का दिवस है आज,
है शहीद दिवस होने का।
श्रद्धानवत हैं आज हम सब,
ऐसे वीर रत्नों के खोने का।
सोच उनकी क्या गजब थी,
विचारें पाठक तो जरा।
इतने कम वय में ही,
उन्होंने प्रण ठाना इतना कड़ा।
आजादी की दीवानगी में ,
ये सपूत अपने प्राण अर्पण किए।
ये किसी योद्धा से कम नहीं,
जो इस बात पर इतना मन दिए।
स्वाधीनता की अग्नि में,
आहूत बन वे कूद पड़े।
न डरे न कभी भय हुआ,
वे जुनून इतना खुद गढ़े।
यशस्वियों की आयु भला,
है कभी देखी जाती कहीं।
राजगुरु, सुखदेव, भगत की
थी आयु भी उतनी नहीं।
देश को आजाद कराना,
लक्ष्य था इतना बड़ा।
उनके सामने और बातें,
तुच्छ था बनके खड़ा।
स्वाधीनता के आंदोलन में,
यह अद्वितीय अध्याय है।
क्या कोई प्राण अर्पण करे इस तरह,
क्या ऐसा कोई पर्याय है।
समझ में आता नहीं,
वे कितने दीवाने लोग थे।
जो लटक गए फाँसी के फंदे से,
न भोगे संसार के कुछ सुखभोग थे।
आज भी जब यह दिन गुजरता,
हाड़ काँप उठती सदा।
क्या इस तरह के दीवाने लोग भी,
क्या फिर पैदा होंगे कदा!
मातृभूमि के लिए उन्होंने,
सर्व त्याग जो था किया।
रोते हुए माता पिता को,
किस तरह दिलासा था दिया!
आज भी हम सभी नतमस्तक हैं,
उनके चरित्र को जान के।
उनके जैसा कोई नहीं,
जो ऐसी प्रतिज्ञा ठान ले।
उनके लिए आँसू सदा,
लोग शोक में बहाते रहेंगे।
जब जब 23 मार्च आएगी,
नाम श्रद्धा से याद आते रहेंगे।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा जिला- मुजफ्फरपुर