फिर से आज निखरना होगा – Puja jha

मानव कब तक हारोगे तुम 

इर्ष्या दोष के वारों से,

घबराते हो तुम कितना

विपरीत हालत के वारों से l

सब सहकर तुमको 

जीवन पथ पर चलना होगा,

हे!मानव रुपी रत्न तुम्हें 

फिर से आज निखरना होगा।

         परशुराम भी नर थे तुमसे 

         भर हुंकार वो वंदन करके,

          मृत्यु लोक की इस धरा को 

           पावन फिर से करना होगा।

           हे! मानव रुपी रत्न तुम्हें 

            फिर से आज निखरना होगा।

नर पिशाच बन बैठे नर तो 

उजड़ गए हों बसे शहर तो

कर कोशिश बसाने की फिर 

उनको याद दिलाने की फिर,

नर में भी नारायण होते 

ये बात उन्हें समझाना होगा।

हे! मानव रुपी रत्न तुम्हें 

फिर से आज निखरना होगा…।

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