धन्य वह गेह, जहाँ खिलखिलाती हैं बेटियाँ,
धन्य वह गेह, जहाँ चहचहाती हैं बेटियाँ,
धर्म-ग्रंथ कहते हैं, गृह-लक्ष्मी होती बहु-बेटियाँ,
सारे देवों का वास वहाँ, जहाँ सम्मानित हैं बेटियाँ,
बेटी निज क्रिया-चरित्र से करती दो कुलों को रौशन,
गिरि-शिखर, अम्बर को भी छूने में कम नहीं हैं बेटियाँ,
आत्मा में लिंग का भेद कहाँ,
पुत्र-सुता होते हैं एक समान,
दोनों की एक ही होती क्षमता,
दोनों बढ़ाते हैं कुल का मान,
किन्तु अवसर जब भी मिले,
मिले दोनों को एक समान,
अवसर जब भी मिलता है,
कुछ भी कर गुजरती बेटियाँ ,
पर ईश्वर ने स्त्रियों को ही,
करुणा-ममता का दिया वर,
इनकी कोख से ही होता है,
महापुरुषों का जन्म भूमि पर,
बड़े-बड़े वीर लाल उत्पन्न कर,
भूमि को कृत्य करती बेटियाँ।
गिरीन्द्र मोहन झा
+2 शिक्षक, भागीरथ उच्च विद्यालय चैनपुर- पड़री, सहरसा