प्रातः हम जग जाएँ,
शीतल समीर पाएँ,
प्राची की लालिमा देख,
कदम बढ़ाइए।
हरे-भरे तरु प्यारे,
लगते सलोने न्यारे,
इनके लालित्य पर,
मन सरसाइए।
नदी का पावन जल,
बागों के सुंदर फल,
सुवासित प्रसून से,
हृदय खिलाइए।
गगन के चाँद तारे,
प्रभु दुखियों के प्यारे,
प्रेम दीन को देकर,
तोष को जगाइए।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज,
भागलपुर, बिहार
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