दुग्ध की प्रथम धार,
माता का असीम प्यार,
बाल क्षुधा तृप्त हुआ,माँ को निहारता है।
आँचल पकड़ कर,
धीरे-धीरे चल कर,
गिर कर उठ कर,थोडा कड़ाहता है।
यौवन की राह पर,
मंजिल को खोज कर,
संकट निस्तार कर,पीड़ा को भूलता है।
द्वंद से होकर मुक्त,
गढ़ता आयाम वह,
सुखद जीवन जीता,क्लेश को हरता है।
एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।
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