मातृ दिवस
पिता देखता है स्वप्न,
मेरा बेटा नाम करे,
शुभ-श्रेष्ठ काम करे,
प्राध्यापक, जिलाधिकारी बने,
हृदय में होता प्यार, मुख पर अमृतवचन,
ये वचन देते पग-पग पर, शिक्षा संग शासन,
माँ चाहती है, मेरा बेटा शिक्षित बने,
मनुष्य बनकर जीए, श्रेष्ठ कुछ काम करे,
हर असफलता पर ममता का हाथ फेरती,
चिंता मन में दबाये चिंता से रोकती,
सर्वदा खुश रहने की प्रेरणा देती,
खुद बच्चों का जामवंत बनती,
उसे प्रयासार्थ प्रेरित है करती,
क्या दे सकता हूॅं अपनी माँ को मैं,
जो मेरी खुशी छोड़ कुछ न चाहा,
मेरी खुशी में ही खुद की खुशी पाया,
मेरे लिए कुर्बान उसकी धूप और छाया,
मैंने सोचा, मैं क्या दूं माँ को,
क्या दे सकता है कोई माता-पिता को,
धन्य जन्म है उसका जिसका चरित सुन,
माता-पिता का हृदय गदगद हो उठे,
जो अपने सुकृत्यों से उनका नाम कर सके ।
…..गिरीन्द्र मोहन झा
+२ भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा
