मित्र!
मित्र सरल है मित्र सहज है,
मित्र पीयूष अनुराग परम है।
मित्र हैं दिल के राज सारथी,
तपिश में सहज सुबास मित्र है।
आनन्द के पथ में आनंदित,
तप्त हृदय की शीतल छाया।
निर्मल गंग की धार सहज वह,
रस धारों की निर्झर माया।
जहाँ बिना सोचे हिय बोले,
मुक्त हृदय सहचार मित्र है।
दिल की बात बताए दिल को,
मिश्री शहद का स्वाद मित्र है।
देखें दिल रौशन हो जाए,
मधुर मिलन अहसास मित्र है।
घंटों बिन मतलब बतियाए,
हिय का परम सुबास मित्र है।
दिल जब दुखता है अपना तो,
सहलाए दिल हाथ मित्र है।
पर्वत पथरीले राहों में ,
विजय का तो अहसास मित्र है।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार
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