दूर खड़ा मुस्कान लिए वह
फुलझड़ियों की दुकानों पे
छोटी सी अंजुलि में उसको
कुछ सिक्के गिनते देखा था
गहरी उसकी आँख में मैने
खुशियाँ मरते देखा था
एक गरीब को दीवाली में
ऐसे जीते देखा था ।
चाह उसे भी नए वस्त्र की
लेकिन उसको देता कौन?
पिछले वर्ष की कोविड में
पिता को उसने खोया था।
खुशियाँ के आने से पहले
खुशियों को मरते देखा था।
एक गरीब को दीवाली में
ऐसे जीते देखा था।
नहीं सका जब रोक अपने को
गया निकट मैं उसके पास
धीरे से रख हाथ सिर पर
पूछा बेटा मुझे बता तू
चाहिए क्या क्या तुझको आज
अपनी अंजुली खोलकर उसने
धन दिया अपना मेरे हाथ
बोला अंकल इस पैसे का
फुलझड़ी दिला दो आज।
छोटी उम्र में आज वह मुझको
गहरा अनुभव करा दिया
सदा नुमाइश गमों का करते
धनिकों को मैने देखा था,
भरे कंठ निर्धन को मैंने
गमों को पीते देखा था।
इस समाज को मैंने आज तक
शान से जीते देखा था
पहली वार इस नंगी आँख से
शान से मरते देखा था।
संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
भागलपुर।