भारत माता की ललाट पर
देदीप्यमान एक बिंदी हूँ,
मैं हिंदी हूँ।
भाषाओं की हूँ सिरमौर
प्रसार मेरा है हर ओर
हर देश मे फैली हूँ मैं
बंधी हुई सब मेरी डोर।
प्रेम की धारा ले बहती
मैं ही गंगा,मैं हीं कालिंदी हूँ,
मैं हिंदी हूँ।
आर्यावर्त की मैं
आन,शान और जान हूँ,
हर हृदय में प्रभुत्व मेरा
मैं खुद एक पहचान हूँ।
गौरवशाली इतिहास मेरा
हर भूभाग में मेरा बसेरा,
राष्ट्र का मस्तक ऊंचा करती
हर दिल में है मेरा डेरा
राजभाषा के हाथों में
सजी हुई मेहंदी हूँ,
मैं हिंदी हूँ।
स्वरचित मौलिक रचना
संजय कुमार (अध्यापक )
इंटरस्तरीय गणपत सिंह उच्च विद्यालय,कहलगाँव
भागलपुर ( बिहार )
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