मनहरण घनाक्षरी छंद
राधा को चिढाती आज,
खुशी की बताओ राज,
रोज करें आपस में खूब अठखेलियाँ।
कुछ नहीं बोलती हो,
छुप-छुप मिलती हो,
किससे मनाती तुम, रोज़ रंगरेलियाँ।
नखरें दिखाओ नहीं,
बात तो बताओ सही,
कौन है मोहन तेरा, बुझाती पहेलियाँ।
रोज इंतजार करे,
दिल से दीदार करे,
पूछती ललिता संग-राधा की सहेलियाँ।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि.बख्तियारपुर, पटना
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