विज्ञापन अंतिम संस्कार का- संजय कुमार

sanjay kumar DEO

ऐड देख कर खुश मैं होऊँ
या आँखें भर भर मैं रोऊँ।
खोया जिसके लिए था सब कुछ
हुआ वही नजरों से दुर्लभ
अंतिम संस्कार का ऐड देखकर
खुश मैं होऊँ या मैं रोऊँ।

बैठा था अखबार लिए मैं
अनमने से साथ पत्नी संग
कुछ पन्ने थे हाथ में उनकी
साथ हमारे कुछ पन्ने थे
पन्नों से आँख के , छुपा के पानी
विज्ञापन उसने एक दिखलाई।
एक कंपनी का प्रचार छपा था
अंतिम संस्कार का इश्तेहार छपा था।

लिखा था उच्च शैक्षिक योग्यता से
बच्चे विदेश में ऊंचे पदों पर आसीन हैं
पैसों की मोह और
अति व्यस्तता के कारण
दूर देश में रहने वाले
माँ बाप के लिए
उच्च पदों पर आसीन बच्चों के पास
समयाभाव है
ऐसे कुलीन लोगों के मरने के बाद
हमारी कंपनी अन्तिम संस्कार
की व्यवस्था कराती है।

कंपनी को मैंने फोन लगाया
सेल्स मैन को घर बुलवाया
सेल्स मैन को पैसे देकर
अंतिम संस्कार का बुकिंग कराया
एक सवाल फिर मैंने पूछा
जीते जी पल पल मरता हूँ
उसका कोई इंतजाम है क्या ?
किराये पर बेटा बहु भी है दे दीजिए
जो हमारे खालीपन को समझे
हमारे साथ बात करे
हमे भी वह प्यार दे
जो हमने भी कभी उन्हें
अपनी जवानी में दिया था।

संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
भागलपुर।

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