शरद् ऋतु का दस्तक
अंधकार छंटते हीं,
रवि की सवारी आया,
बैठ तरु डाल पर, करते परिंदे शोर।
पछियाँ जो समूह में,
कोलाहल कर रहे,
अचानक झुंड बना, उड़ते गगन ओर।
जल्दी से शरद ऋतु-
है आने को उतावला,
कुहासे को देखकर, उदास हो रहा मोर।
जलाशय बहे थे जो-
तटबंध तोड़कर,
ताल नदी सरोवर, सिमट रहे हैं कोर।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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