सत्य अहिंसा का राही- रत्ना प्रिया

Ratna Priya

सत्य अहिंसा का राही

 

आत्मतत्व की ज्योति पाने, जब कोई अकुलाता है ।

सत्य अहिंसा का राही तब, गौतम बुद्ध बन जाता है ।।

 

जन्म-जरा और मृत्यु से, सिद्धार्थ का मन घबराया था।

सुख-सुविधाओं में पलकर भी, विलासी मन न भाया था।।

पत्नी, पुत्र का मोह त्यागकर, चल पड़ा बनने संन्यासी।

रूप-मोह का बंधन भी, गौतम को बाँध न पाया था।।

दृढ़-निश्चय कर चलनेवाला, जग को राह दिखाता है ।

सत्य अहिंसा का राही तब, गौतम बुद्ध बन जाता है ।।

 

देववृक्ष पीपल ने बुद्ध को, ज्ञान का बोध कराया था।

प्राणवायु की शीतलता ने, शांतिमंत्र गूँजाया था।।

काम क्रोध, तम की ज्वाला, भष्म हुई थी क्षणभर में।

इंद्रजीत के शांतिदूत का, रूप निखरकर आया था।।

अपने दीपक आप बनो यह, मंत्र हमें सिखलाता है ।

सत्य अहिंसा का राही तब, गौतम बुद्ध बन जाता है ।।

 

 

बुद्धं शरणं गच्छामि को, पुनः विश्व यदि अपनाएगा।

देव-दुर्लभ मनुज तन को फिर, यूँ ही नहीं गँवाएगा।।

ध्यान, ज्ञान, नैतिकता जैसे, सुंदर पुष्प खिलाएँगे।

मगध भूमि में दुर्लभ पुष्प यह, विश्व धरा महाकाएँगे।।

प्रेम, क्षमा के दानी को जग, शत्-शत् शीश झुकाता है।

सत्य अहिंसा का राही तब, गौतम बुद्ध बन जाता है ।।

 

  • रत्ना प्रिया – शिक्षिका (11 – 12)

उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर

चंडी ,नालंदा

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