हे स्वर की देवी माँ, वाणी मधुरिम कर दो।
मैं दर पर आया हूँ, शुचि ज्ञान सुमति वर दो।।
इंदीवर पर राजित, है श्वेत हंस वाहन।
वेदों की जननी माँ, हो अधिकारी यह मन।।
उड़ सकूँ ज्ञान नभ पर, ऐसे पुनीत पर दो।
हे स्वर की ———————।
सरगम का ज्ञान नहीं, लय का न ठिकाना है।
टूटी वाणी से माँ, क्या गीत सजाना है।।
गीतों की माला को, सुंदर छवि मनहर दो।
हे स्वर की——————।
अज्ञान तिमिर हर कर, ज्योतिर्मय पथ करना।
शुभकारी भावों को, अंतर्घट में भरना।।
हे मनोरमा माते, करुणा का निर्झर दो।
हे स्वर की ———————-।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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