फूल बनूँ- अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

फूल बनूँ ; काँटें न बनूँ ,
सबके मन का मीत बनूँ ।
रगड़ा नही किसी जन से हो ,
जन – जन का संगीत बनूँ ।

आये हैं इस जग में भगवन ,
खुशी सभी का साथ मिले ।
दुःख में हाथ बँटाएँ सबका ,
सुख में सबका साथ मिले ।

मानव जीवन सबसे सुंदर ,
यह प्रस्तुत नित मैं किया करूँ ।
फूल बनूँ ; काँटें न बनूँ ।
सबके मन का मीत बनूँ ।

जीवन यश न अपयश में बदले ,
सत -पथ पर मैं चला करूँ ।
कोई मुसीबत न बनूँ किसी का ,
ऐसा काम नित किया करूँ ।

भूल सकूँ तो बुरा किसी का ,
क्षमा के पथ पर चला करूँ ।
फूल बनूँ ; काँटें न बनूँ ,
सबके मन का प्रीत बनूँ ।

खाली हाथ हम आए भगवन ,
खाली हाथ ही जाना है ।
नहीं किसी को कभी सताएँ ,
यही मन मे मैंने ठाना है ।

नही किसी से रगड़ा -झगड़ा ,
नहीं किसी का सिरदर्द बनूँ ।
प्रीत करूँ दिल से मैं हमेशा ,
कपट कभी न किया करूँ ।

जीवन मे कुछ लक्ष्य हमेशा ,
लेकर नित मैं चला करूँ ।
फूल बनूँ ; काँटें न बनूँ ।
सबके मन का प्रीत बनूँ ।

माटी का तन फिर माटी हो जाए ,
न अहंकार कभी रखा करूँ ।
फूल बनूँ ; काँटें न बनूँ ,
सबके मन का मीत बनूँ ।

रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा ।
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )

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