मिट्टी का खिलौना- जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

मैं मिट्टी हूं मगर एक
आकार का प्यासा हूँ।
कोमल हाथों से एक
आकृति प्रदान कर दीजिए।।
मैं इस उपकार को ताउम्र
तक निहारता रहूंगा।।
मैं तो फिजाओं का एक
झोंका हूँ ।
” पहाड़ के- कंदराओं में
भटकता फिरता- रहता हूँ”।।
कहीं आशियानों का ठिकाना बना दीजिए।।
इस उपकार को सदियों तक,
पत्थर के लकीरों पर नाम लिख दूंगा।
“मैं तो एक कली हूँ”
मगर भंवरे का प्यासा हूँ।।
आप तो बगिया की माली है,
एक सुगंधित हवा का ।
झोंका बनके घर और
आंगन महका दीजिए।।
इस उपकार का तरन्नुम –
गाता फिरुंगा।।
” मैं तो एक बादल हूँ”
मगर पवन का प्यासी हूँ।
सावन में फुआर बनके,
कजरी संग झूमा दिजिए।।
इस उपकार को कश्तियां
बनकर लहराता फिरुंगा।
“मैं तो एक पर्वत हूँ”
मगर चोटियों का प्यासा हूँ।
आप तो प्रकृति के हर वादियां है ।।
“गंगा जमुना जैसे पवित्र।
धारा में समाहित कर लीजिए
आप की धारा का गुणगान
युगो-युगो तक गाता फिरुंगा।


जयकृष्णा पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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