बंधन प्रीत के – संजय कुमार

Sanjay Kumar

आपसे ही बंधी,मेरे जीवन की हर डोर
आपसे ही पिया सांझ है,आपसे ही भोर।
आप ही मेरे,मनमंदिर के अप्रतिम देव,
मैं आपकी प्राणेश्वरी,आप मेरे महादेव।
आपके कदमों में ही,मेरा सकल संसार
आप ही हैं मेरे जिंदगानी के खेवनहार।
आपसे ही बंधी है,मेरे साँसों की आस
आप पर टिकी हुई है,मेरा सम्पूर्ण विश्वास।

एक चाँद है फलक पर,पर आप मेरे चाँद हो
मेरे लिए आप ही साजन,मेरा पूरा ब्रह्मांड हो।
व्रत रखूं मैं,आपको हर जन्म पाने को
भाग्यवती,अखंड सौभाग्यवती कहलाने को।
आपके लिए करती रहूं मैं,सोलहों श्रृंगार
हर जन्म में मिले पति परमेश्वर,आप बार-बार।
करती हूँ मैं आपकी लम्बी उम्र की कामना,
हर मोड़ पर जीवनसाथी,मेरा हाथ थामना।
पवित्र अग्नि के फेरे लेकर,बंधा आपसे मन
टूटे कभी नही साजन,निभाना सातों वचन।
प्रीत कभी कम न हो,असीम रहे प्रेमबंधन,
करवाचौथ का व्रत कर,रहूं अखंड सुहागन।

स्वरचित मौलिक रचना

संजय कुमार (अध्यापक )
इंटरस्तरीय गणपत सिंह उच्च विद्यालय,कहलगाँव
भागलपुर ( बिहार )

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