वेद-वेदान्त की है उक्ति यही, सदा बनो निर्भीक, कहो सोsहं , उपनिषद कहते हैं, ‘तत्त्वमसि’, तुम में ही है ‘ब्रह्म’, तू न अकिंचन। ऋषि व्यास जी ने है रचा, शुभकर…
सागर और नदी -गिरीन्द्र मोहन झा
सागर ने नदी से कहा- सरिते! लोग कहते हैं, तुम नदी समान बनो, चलो, निरंतर चलो, विघ्नों को लाँघकर, अनवरत आगे बढ़ो, नदी ने सागर से कहा- तात! मेरी शरण…
हरियाली विकसाएँ हम- रत्ना प्रिया
सूरज के प्रचण्ड ताप से , अब नहीं कुम्हलाएँ हम । आओ करें श्रृंगार धरा का, हरियाली विकसाएँ हम ॥ पंचभूतों की प्रकृति में, नित्य विष हम घोल रहे, अपने…
योग दिवस मनाये-कंचन सिंह
#मैं-हूं-योगदूत #Iam yogdoot आओ बच्चों योग करें हम, मिलजुल कर यह प्रयोग करें हम, योग है एक ऐसा सोपान, जिसको करके हम बने बलवान। पतंजलि का है यह मूल मंत्र,…
मृत्यु -गिरीन्द्र मोहन झा
मृत्यु अटल है, शरीर की, मरण असम्भव, जमीर की, मृत्यु यदि मिले सुमृत्यु तो, देश हित, लोक हित में हो, यह मृत्यु अमर बना देती है, उच्च विचार, उच्च आदर्श…
है बेबस धरती – एस.के.पूनम
मनहरण घनाक्षरी बहती है कलकल, सोचती है हरपल, सूखे नहीं नीर कभी,यही दुआ करती। तट पर आशियाना, साधु-संतों का ठिकाना, होता यशोगान हरि,वेदना को हरती । गर्भ में जहान पले,…
वन गमन – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति
वन गमन (तंत्री छंद) जनक दुलारी, हे सुकुमारी, कैसे तुम,वन को जाओगी। पंथ कटीले,अहि जहरीले, कैसे तुम,रैन बिताओगी।। सुन प्रिय सीते, हे मनमीते, आप वहाँ,रह ना पाओगी। विटप सघन है,दुलभ…
किसने रोका है? – गिरीन्द्र मोहन झा
किसने रोका है? अंधेरा घोर घना है, एक बत्ती जलाने से किसने रोका है? प्रदूषण बहुत ही है, एक पेड़ लगाने से किसने रोका है? निराशा है चारों ओर, उर…
तुझे अपनाना है- एस.के.पूनम
गगन में मेघ छाए, ठंडी-ठंडी बूंदें लाए, अंबु से सरिता भरी,हरि को पिलाना है। चल पड़े आप साथ, थाम रखें मेरा हाथ, नदियाँ उफन रही,उस पार जाना है। कन्हैया की…
लक्ष्य और दिशा- गिरीन्द्र मोहन झा
लक्ष्य से अधिक है दिशा महत्त्वपूर्ण, सही दिशा में सतत करते रहो प्रयास, यदि दिशा सही हो, तो तू अगर नहीं, कोई और पीढ़ी जाएगी लक्ष्य के पास, इतना ही…