कर्पूर बदन-जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++ सिर शोभे जटा जूट, विभाकर का मुकुट, कर्पूर बदन शिव, हाथों में त्रिशूल है। चढ़ता है बेलपत्र, गंगाजल बने इत्र, फूलों में अधिक प्यारा, धतूरा का…

आज वीरान क्यों है- जयकृष्णा पासवान

आज धरती पर आसमां, वीरान क्यों है। चांद और सितारे, भी तो वहीं है। मगर हवा की सुर्खियां, इतना परेशान क्यों है।। हरेक-लम्हों की बेचैनी, ईंटों के दिवारों में दिखती…

मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

टूटे रिश्ते जिंदगी गुजर जाती, यहां रिश्ते बनाने में, गाँठ पड़ जाते यदि, टूटे-रिश्ते जुड़ते। खूब मजबूत रखें , संबंधों की बुनियाद, बालू की दीवार बने, घर नहीं टिकते। प्रेम…

मुस्कान- अश्मजा प्रियदर्शिनी

निराश ह्रदय कुंठित काया को हर्षित करे खिल जाता जीवन बगिया अनूप । मिल जाती खुशियाँ अपार न होता विषम वेदना,कष्ट,विपदा कुरुप । कभी चाँद की चाँदनी की शीतलता ,कभी…