ऐ जिंदगी – रश्मि मिश्रा

ऐ जिंदगी जिसे तुझे जीना आ गया उसके लिए तू सरल बहुत है ,पर उनके लिए तू कठिन बहुत है, जो तेरे नखरे ना झेल पाया। 

ऐ जिंदगी जिसे तुझे जीना आ गया उसके लिए तू सरल बहुत है। 

तू उस महबूब की तरह है ,जो हृदय के अनंत गहराइयों से चाहता है पर ,

दुनिया के सामने दिखाने से डरता है और यह वही प्रेम है, जो पीड़ा बहुत देता है।

ऐ जिंदगी वैसे तो तू सरल बहुत है पर उनके लिए तू कठिन बहुत है ,जिसे तुझे जीना ना आया। 

बचपन में तो तू ममता मयी माँ की तरह थी, पर युवा अवस्था आते-आते तू सौतेली माँ बन गई ।

कहने को तो तू माँ ही है ,पर तुझ में वह ममत्व नहीं है।

जिसे जीने को तो सब जी रहे हैं पर ,

ऐ जिंदगी तू इतनी सरल भी नहीं है। 

सारी जिंदगी ठोकर खाते-खाते गुजार दी है ।

तेरे दीदार को बेचैन बैठे हैं, कभी इधर भी नजर कर ।

ऐसे संग दिल बन बैठी हो जैसे हमसे राब्ता नहीं।

कभी तो हमें अपने आगोश में ले ले, कब से तन्हा बैठे हैं। 

ए जिंदगी जिसे तुझे जीना आ गया उसके लिए तू सरल बहुत है पर उनके लिए तू कठिन बहुत है जो तेरे नखरे ना झेल पाया।

रश्मि मिश्रा

प्रधान शिक्षिका 

 नव. प्रा.वि. चिंतामनपुर चमार टोला, चकिया

पूर्वी चंपारण

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