आर्तवाणी से पुकारा-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

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आर्तवाणी से पुकारा

मेरे मोहन इन चरणों की अब तो दे दो सहारा।
बिना मांझी यह जीवन नैया कैसे लगे किनारा।।
जड़ चेतन सब तेरी माया, कण-कण में तू है समाया,
जुगनू में तू आभा बन गए, फूलों ने गंध तुमसे है पाया।
सूरज बनकर प्रकाशित होता, है दूर करता अंधियारा।।
हास और परिहास में तू है, जीवों के हर स्वांस में तू है,
मंदिर, मस्जिद नहीं गुरुद्वारे में, मानव के विश्वास में तू है।
द्रोपदी की तूने लाज बचाई जब आर्तवाणी से पुकारा।।
मोह माया में भटक रहा हूं कब से जग में आकर,
अंदर से मैं टूट चुका हूं, दर-दर की ठोकर खाकर।
अंतर्तम प्रकाशित कर दो बनकर तुम सूरज तारा।।
विषय भोग में डूब चुका हूं कमती नहीं अभिलाषा,
इंद्रियों से रसपान किया पर हूं प्यासा की प्यासा।
चाहत की कोई था नहीं है फिरता हूं मारा-मारा।।
कोई नहीं है अपना जग में तुमसे आस लगी है,
दीनों का तूं जगत पिता है, मन में विश्वास जगी है।
जो भी तेरे शरण में आया सबको तूने है तारा।।
सुत दारा, पद लक्ष्मी पाकर था हमने बहुत इतराया,
व्याधि, बुढ़ापा जब घेर लिया तब कोई काम ना आया।
तेरे बिना अब हे गिरधारी अब होता है नहीं गुजारा।
बिना मांझी यह जीवन नैया कैसे लगे किनारा।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि
पटना (बिहार)

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