स्तनपान अमरत्व दान
मैं भी हूँ एक माँ,
सर्वप्रथम मैं अपनी अनुभूति लिखूंगी..
माँ के दूध को अमृत समान कहूंगी,
स्तनपान को पाक-पवित्र माँ के
रक्त से निर्मित अमृतपान कहूंगी,
जैसे ही थी… वो गोद में आई…
तुरंत उसे लगाकर स्तन से,
दिया उसे जीवनदान कहूंगी…
थी वो कैसी अनुभूति,
जाने उसे मैं अब, कैसे लिखूंगी…
केवल इसकी महत्ता नहीं अपितु,
इसे “ममता का अस्तित्व” कहूंगी…
स्नेह स्पर्श का एक अनूठा – अमूल्य…
ममत्व-भरा वात्सल्य भाव कहूंगी,
रोग-प्रतिरोधक क्षमता का वरदान कहूंगी…
गंगा-सा निर्मल, शुद्ध, पवित्र और
सृष्टि का सुमन, प्रथम रसपान कहूंगी….
माँ की ममता का अमूल्य उपहार लिखूंगी…
धरती पर देवी माँ स्वरूप पालनहार लिखूंगी….
सृष्टि का खूबसूरत एकमात्र श्रोत कहूंगी,
साक्षात ईश्वर का होता जहाँ पवित्र एहसास,
ऐसी मासूम, ममता स्वरूपा, देवी माँ कहूंगी….
है अर्पित चन्द शब्द सुमन माँ के चरणों में…
और है बारम्बार गौरवान्वित नमन उन्हें……..
माँ के सीने में जिसने उतारा यह अमृत-धारा,
हो जैसे देवकी ने जन्म दिया और
थी जिसे मैया यशोदा ने पाला…..
ऐसे जग के पालनहार को और क्या मैं कहूँ…..
केवल उसे “कृष्णा की तृष्णा” का सुंदर रूप लिखूंगी…
माँ के दूध को अमृत समान कहूंगी,
रक्त से निर्मित अमृतपान कहूंगी।
मधु कुमारी
कटिहार