बाल मन- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

बिस्किट मिठाई केक, नौनिहालों को भाते हैं, जहाँ हों खिलौने-टॉफी, आंखें उसी ओर हैं। कोई भी मौसम रहे, खुशियों की बाँह गहें, गली से चौबारे गूंजे, बच्चों की ही शोर…

जंगल में विद्यालय- रणजीत कुशवाहा

शिक्षा बना बाजारवाद का आलय। जंगल में खुला ग्लोबल विद्यालय।। जब जंगल में विद्यालय खुला। प्रचार प्रसार खुब जमके हुआ।। उत्साहित थे सभी जानवर। नाम लिखाये सब जमकर।। महंगी फीस…

वर्षा रानी- रणजीत कुशवाहा

खुब बरसों प्यारी वर्षा रानी। पग-पग कर दो पानी-पानी।। बादलों से मोरों को नचा ओ। मेंढक की टर्र – टर्र सुनाओ।। पेड़-पौधों में हरियाली दो। जीव-जंतु में खुशहाली दो।। जब…

शीत का भरण है- एस.के.पूनम

विद्या:-मनहरण घनाक्षरी ठंडी-ठंडी हवा चली, शीत यहाँ खूब पली, आलाव है जल पड़ी,ठंड में शरण है। अंशु-अंशु कह पड़ा, करबद्ध रहा खड़ा, न जग से छीने ताप,शीत में मरण है।…

पक्षियों की भाषा और जीवन गान- सुरेश कुमार गौरव

पक्षियों की भाषा भी बड़ी सुरमयी सी होती हैं! इनके कलरव बोल से मन गीतमयी सी होती हैं!! कभी इस डाल तो कभी उस डाल ये डोलती हैंं! स्वच्छंद विचरण…

प्रकृति और मनुष्य- रणजीत कुशवाहा

प्रकृति है जीवन का आधार। मनुष्य ने किया इससे खिलवाड़।। गगनचुंबी इमारत की जाल बिछाई। धरा पर कंक्रीट रुपी जंगल फैलाई।। पेड़-पौधे की अंधाधुंध कर कटाई। कृषि योग्य उपजाऊ भूमि…

मैं खुश हूं कि- रणजीत कुशवाहा

मैं खुश हूं कि क्योंकि मैं थोड़ा बहुत कमा लेता हूं, यानि बेरोजगार तो नहीं हूं , जो बेरोजगार लोग होंगे उनका जीवन यापन कितनी कठिनाई से गुजरती होगी। मैं…

रुप अनेक पर मैं इक नारी हूं-रणजीत कुशवाहा

अपने पापा की प्यारी परी हूं। जननी मां की राज दुलारी हूं।। बड़े भैया की बहना न्यारी हूं। बाबुल के अंगना की फूलवारी हूं ।। मैं तो दो जहां की…