कब तक हार से डरते रहोगे – गुड़िया कुमारी

  कब तक यूँ ऐसे बैठे रहोगे, कब तक हार से डरते रहोगे। कदम आगे बढ़ाना होगा, अगर लक्ष्य को पाना होगा। हार-जीत का खेल भी होगा, साहस तुम्हें दिखलाना…

भगवान विश्वकर्मा- अमरनाथ त्रिवेदी

सजी धजी यह धरा सुहानी , कितनी  प्यारी   लगती  है। विश्वकर्मा जी की कृपा मात्र से , यह  छटा  निराली  लगती   है।। अभियंता का काम जगत में, यह  अभियंता  ही …

यही हमारी हिन्दी है- संजीव प्रियदर्शी

.   जिस वाणी में बोल रहा हूँ यही हमारी हिन्दी है। माॅम- डैड संस्कार न अपना, माँ- बाबूजी हिन्दी है।। मिस्टर- मैडम कहना छोड़ो, श्री- महोदया हिन्दी है। आंटी…

मेरी नानी – मनु कुमारी

  कितनी प्यारी मेरी नानी रोज सुनाती हमें कहानी। परीलोक की सैर कराती, बात -बात में हमें हँसाती। मम्मी जब भी डाँट लगाती, नानी आकर हमें बचाती। मीठी-मीठी बातें कहतीं,…

विधाता छंद – एस. के. पूनम

सहज हिंदी सरल भाषा, धरातल भी दिवाना है। कहीं बिंदी कहीं नुक्ता, जमाना भी पुराना है। चलीं कलमें जगी आशा, कुशलता को बढ़ाना है। थकी हिंदी गलत सोचा, समग्रता को…

दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

हिंदी अमरतरंगिनी, जन-जन की है आस। सच्चे उर जो मानते, रहती उनके पास।। हिंदी भाषा है मधुर, देती सौम्य मिठास। शब्द-शब्द से प्रीति का, छलक रहा उल्लास।। जन-जन की भाषा…