मैं मिट्टी हूं मगर एक आकार का प्यासा हूँ। कोमल हाथों से एक आकृति प्रदान कर दीजिए।। मैं इस उपकार को ताउम्र तक निहारता रहूंगा।। मैं तो फिजाओं का एक…
Category: बाल कविता
सोन चिरैया गौरैया – सुरेश कुमार गौरव
वर्तमान में पक्षी जगत की गौरैया अब विलुप्ति के कगार पर है। कहां चली गई कभी मेरे घर की मुंडेर की कोमल गौरैया, बचपन में कहते थे इसे छोटी ,प्यारी…
पंछी – चांदनी समर
रोको ना मुझे टोको ना मुझे, पंछी को पर फैलाने दो है आज़ादी का स्वप्न मेरा, मुझे पंख खोल उड़ जाने दो तिनके चुन रखे हैं सपनों के, मैंने परों…
मछली रानी- ब्यूटी कुमारी
मछली रानी बड़ी सयानी मत कर तू मनमानी। कितने सुंदर शल्क हैं तेरे कोमल तन को ढकता। गिल्स से सांस लेती हो तुम प्यारी प्यारी आंखें तेरी। कभी पानी के…
आलू की असलियत कि इंसानी फितरत- नवाब मंजूर
( भोजपुरी तड़का ) आलू जवन लाल हो जाला कमाल हो जाला एकदमे गुलाल हो जाला फूल के गुलाब हो जाला सबका ईहे# सोहाला! उजरका ना भा#ला का त# ई…
बाल मन- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
बिस्किट मिठाई केक, नौनिहालों को भाते हैं, जहाँ हों खिलौने-टॉफी, आंखें उसी ओर हैं। कोई भी मौसम रहे, खुशियों की बाँह गहें, गली से चौबारे गूंजे, बच्चों की ही शोर…
जंगल में विद्यालय- रणजीत कुशवाहा
शिक्षा बना बाजारवाद का आलय। जंगल में खुला ग्लोबल विद्यालय।। जब जंगल में विद्यालय खुला। प्रचार प्रसार खुब जमके हुआ।। उत्साहित थे सभी जानवर। नाम लिखाये सब जमकर।। महंगी फीस…
वर्षा रानी- रणजीत कुशवाहा
खुब बरसों प्यारी वर्षा रानी। पग-पग कर दो पानी-पानी।। बादलों से मोरों को नचा ओ। मेंढक की टर्र – टर्र सुनाओ।। पेड़-पौधों में हरियाली दो। जीव-जंतु में खुशहाली दो।। जब…
फूल बनूँ- अमरनाथ त्रिवेदी
फूल बनूँ ; काँटें न बनूँ , सबके मन का मीत बनूँ । रगड़ा नही किसी जन से हो , जन – जन का संगीत बनूँ । आये हैं इस…
चूहा जी- मीरा सिंह “मीरा”
(बाल कविता) दौड़े दौड़े घर में आते ताक झांक करते चूहा जी। नए पुराने सारे कपड़े कुतर कुतर जाते चूहा जी। अम्मा मेरी है गुस्साई झट से चूहे दानी लाई।…