माँ! शब्द नही ब्रह्म! संतति का सर्वस्व! निर्मल मोहक सौंदर्य! माँ! अद्भुत आनंद! धरा का स्वर्ग। सृष्टि में अतुल्य! माँ! सहती पीड़ा अनंत! मुस्कराते हुये, संतति के लिए! साहस अदम्य!…
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मित्रवत व्यवहार – जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
रूप घनाक्षरी छंद आपसी बढ़ाए प्रीत, लिखिए नवल गीत, अपने पराए हेतु, दिल में भरा हो प्यार। कोई नहीं बड़ा-छोटा, नहीं कोई खरा-खोटा, शत्रुता को भुलाकर, सबको बनाएंँ यार। छोटों…
धरती का मान बढ़ाएंगे – देव कांत मिश्र ‘दिव्य
धरती का मान बढ़ाएंगे – विधा: गीत(१६-१६) जन्म लिए हैं दिव्य भूमि पर धरती का मान बढ़ाएँगे। रंग-बिरंगे फूल खिलाकर, बागों को खूब सजाएँगे।। धरा हमारी मातृ तुल्य हैं, सच्ची…
सबको गले लगाएँ हम – राम किशोर पाठक
विधा: गीतिका भटके को राह दिखाएँ हम, सबको गले लगाएँ हम। कलुष भाव के घोर तिमिर में, प्रेम-पुंज फैलाएँ हम।। दुष्कर्मों का गंध भरा है, कर्म-पुष्प विकसाएँ हम। जो मानवता…
धरा विचार – मुक्तामणि छंद – राम किशोर पाठक
धरा विचार – मुक्तामणि छंद धरती कहती प्रेम से, सुनें प्यार से बातें। भूल अगर करते नहीं, आज नहीं पछताते।। भीषण गर्मी पड़ रही, काट रहे तरु प्यारे। पीने के…
समीक्षा लोग ही करते – एस.के.पूनम
विधाता छंद (1) कलम है पास में मेरे, सदा तैयार लिखने को। पटल पर खास शब्दों को, उकेरा है सिखाने को। निराशा में डगर बदली, पढ़ाया पाठ जीने का। मदय…
शेष नहीं – शिल्पी
बहरहाल अर्ध हूँ मैं मेरे शून्य का कुछ प्रतिशत मृत्यु के द्वार पर है खड़ा शेष बाट जोह रहा इसके आमंत्रण की मेरे भीतर के पल्लवित ‘स्वंय’ ने आकांक्षा रखी…
शिवरात्रि है – राम किशोर पाठक
छंद – घनाक्षरी शिव शंकर की भक्ति, श्रद्धा भाव यथाशक्ति, मिटाती यह आसक्ति, बनें दया-पात्र हैं। मनाएँ हर माह में, त्रिपुरारी की छाँह में, कृपालु के पनाह में, रहें दिवा-रात्र…
माँ – अश्मजा प्रियदर्शिनी
भू-तल पर जन-जीवन की तुम आशा हो। माँ तुम चराचर जगत की परिभाषा हो। तुम हीं लक्ष्मी, सरस्वती, तुमसे जीवन है, माँ तू जण-गण की सब कलिमल नाशिनी हो। तू…
संसार के असली मर्म – अमरनाथ त्रिवेदी
कोई भी कुछ कह ले सुन ले , इस दुनिया में कोई नहीं रह पाया है । जो इस मृत्यु भुवन आया वंदे , कभी चैन नहीं रह पाया है…