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कंप्यूटर
एक सपना था अनोखी, निराली
हुआ जीवंत हुई अनंत खुशहाली।
इसे देखकर मन हुआ उमंग
इससे करना था कार्य अनंत।।
सन 1822 की है बात
पास्कल की प्रेरणा का हुआ आगाज।
चार्ल्स बैबेज ने किया आविष्कार
पहला डिफरेंशियल इंजन का दिया आकार।।
चार्ल्स बैबेज इसके जनक कहलाए
सभी को इस के गुण धर्म से नहलाए।
पूरी दुनियाँ को है आज इस पर आस
सब कुछ सुलझेगा मन में है विश्वास।।
शुरू हुआ जब इसका उपयोग
खत्म हुआ समय का दुरुपयोग।
कठिन से कठिन कार्य को किया सरल
मानव श्रम को बनाया अविरल।।अनेक प्रकार से आता काम
नहीं करता कभी भी विश्राम।
गणितीय सवाल पल में सुलझाता
मन उदास को खूब बहलाता।।
चाहो तो इससे दुनियाँ की ‘सैर’ करो
पृथ्वी, मंगल, चंद्रमा की और करो।
आर्यभट्ट, अबेकस, नेपियर, पास्कल।
सभी का सपना जागृत हुआ आजकल।।
✍️ शुकदेव पाठक म. वि. कर्मा बसंतपुर कुटुंबा, औरंगाबाद