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भास्कर आराधना -छठ पूजा
कार्तिक षष्टी पुण्य प्रभाउ,
जानत जन मन लोक सुभाउ।
रवि प्रकाश जीवन धर काहु,
भास्कर नमन है सहज सुभाउ।
तप व्रत भक्ति नही कोई दूजा,
हठ धर शक्ति करावत पूजा।
गंग नहाय सब शुद्व कराऊँ,
कद्दू भात से व्रत मैं उठाऊं।
खरना प्रसाद सब लोकन पावैं,
रोटी खीर तब सब मन भावैं।
रखत ख्याल परम् शत जाके,
पल पल निरत न कछु मन झांके।
यथा शक्ति जस भक्ति सुभाउ,
फल फूल ठेकुआ बनत प्रभाउ।
ईख डाम्भ नारियल संग मेवा,
लागत है प्रकृति कर सेवा।
गंगा के संग सब गुहरावै,
जल नहाई रवि अर्ध्य दिलावै।
अस्ताचल की ओर रवि जायो,
सब व्रती अर्ध्य देय गुहरायो।
प्रात काल सब लोग लुगाई,
सज धज आये घाट सुहाई।
रंग विरंग बहुभाँती सजायो,
घाटन महिमा का शब्द बतायो।
व्रती व्रतधारी सब संग धाए,
गंगा में हैं विनत समाए।
गंग नहाय करत सब पूजा,
आदित्य सम नही लागै दूज।
प्रात काल जब रवि रथ आयो,
लालिमा नभ में सहज ही छायो।
अब ब्रतधारी के मुख की कांति,
पूर्ण भये हठ मिल गई शांति।
हृदय में अति आनंद समायो,
अर्ध्य देय सब रवि गुहरायो।
मंत्र वे मंत्र सब भाव जो हियँ के,
रवि को सहज मनौती पिय के।
करी प्रणाम जोरी जुग पाणी,
बारम्बार मनावहीँ प्राणी।
हे आदित्य ग्रहण कर पूजा,
कष्ट निवारण करौ न हो दूजा।
सब सुख सहज ही सुलभ हो जावे,
जो कोई छठ रवि भास्कर मनावै।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार
