एक था मोहन बड़ा निडर था
लाठी लेकर हाथ में
चला अकेले फिर तो सारा
जग भी चल दिया साथ में।
क्रोध लोभ, जिह्रवा, पुरुषत्व को
खुद से उसने जीता था
त्याग तपस्या, सत्य-अहिंसा
उसके हाथ में गीता था।
रंगभेद के नशे में गोरे ने
जब सफर में रोका था
तभी विरोध की ज्वाला जागी
उसने पत्र लिखा और टोका था।
ऐ राजा, क्यूँ तेरे राज में
फैली कैसी ये रंगभेद
सारे मानव ईश्वर ने गढे हैं
फिर क्या काले फिर क्या सफेद।
यही बोल जब मोहन लौटा
भारतबर्ष आक्रोश में
अँग्रेजी शासन का शोषण
फैला था पूरे देश में।
चम्पारण से शुरू किया
शिक्षा, खादी और चरखा
स्वदेशी की आई आँधी
अँग्रेजी शासन दरका।
साबरमती से टोली लेकर
नमक बनाने निकला
कोने-कोने में नमक बनाया
क्या अगला क्या पिछला।
अँग्रेजों भारत छोड़ो का
जब दिया संत ने नारा
करो मरो फिर यही सोच कर
खडा देश हुआ सारा।
अँग्रेजी शासन की तो तुमने
ईंट से ईंट बजा दी
सन सैंतालीस पंद्रह अगस्त
को हमें मिली आजादी।
चलकर तेरे ही रस्ते पर
हम हिंसा का दमन करते हैं
मोहन, तुम तो राष्ट्र पिता हो
तुमको नमन करते हैं।
अरविंद