जाते हुए ऐ लम्हें
विदा हो रहे ऐ वक्त फिर लौटकर, यह दिन मत दिखलाना !
कोरोना काल के इस भया भय इतिहास को मत दुहराना !!
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कितने हो गए काल कवलित, छोड़ गए वह अपना घराना !
लाव-लश्कर सब रह गए, अब तो रहने दो इनका ठिकाना !!
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जाते वक्त भी न दे सके कोई, अपने को अपना सिरहाना !
अपनी जान पर बन आई, जरा रिश्तों के मोल को समझना !!
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ऐसी मौत और खौफ की, अपने भी कई साथ छोड गए !
राजा-रंक-फकीर सभी, अपने जीवन क्रम को तोड़ गए !!
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ऐ जाते हुए लम्हे फिर ऐसे बुरे वक्त को, दूबारा भी मत लाना !
पिंजरे में कैद सी माफिक हो गई थी, हम सबकी जिंदगानी !!
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अब तो जरा लौट भी जाओ हे कोरोना! जरा करो मेहरबानी !
आखिर मानव से ही इतनी खता और गुस्सा क्यों रही तुम्हारी !!
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पशु-पक्षी और जल-जीव पर, लगता तुम खूब बने कृपा पात्र !
कुछ मानव की गलतियों पर, इन सबके लिए बने तुम कुपात्र !!
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कवि हृदय डोल गया बोल गया, प्रकृति के उन गुनहगारों को !
कभी माफ न कर पाएगी प्रकृति, स्वार्थी मौत के सौदागरों को !!
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बीत रहे ऐ लम्हें विनती है अब, जरा ठीक से तो गुजर जाओ !
पल छिन रुकी हुई सबकी खुशियां तो, जरा फिर से लौटाओ !!
सुरेश कुमार गौरव ✍️
मेरी स्वरचित मौलिक रचना
@सर्वाधिकार सुरक्षित ✍️