है लोकतंत्र की महिमा न्यारी।
चलती जिससे संविधान प्यारी।।
सबने बदली अब दुनियादारी।
लूट रहे धन कहकर सरकारी।।
लेकर सारे धन-बल की आरी।
कुर्सी पाने की है तैयारी।।
जनता बनती रहती बेचारी।
अक्ल सभी जब जाती है मारी।।
नेता ढूँढें कोई उपहारी।
चाहे देखे वह सुंदर नारी।।
कुछ को लगी है नयी बीमारी।
जाति-वर्ण लोकतंत्र पर भारी ।।
आतुर करने को है गद्दारी।
कैसी आयी सबमें लाचारी।।
जाति देखकर कुछ कहे विचारी।
हमसे बनती सरकार हमारी।।
भाईचारा का बन संहारी।
बदल न पाए मन से सब हारी।।
नेताओं की है अजब उदारी।
सब सेंक रहे हैं पारा-पारी।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला
बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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