जिंदगी की परिभाषा-नूतन कुमारी

 

ज़िंदगी की परिभाषा

कभी धूप तो कभी
छांव है ज़िंदगी।
कभी शहर तो कभी
गाँव है ज़िंदगी।
कभी खुशियाँ तो कभी
गम है ज़िंदगी।
कभी सुंदर सा सरगम
है ज़िंदगी।
कभी ताउम्र मोहब्बत
तो कभी दिल में नफरत
है ज़िंदगी।
कभी अनंत प्यार तो
कभी सिर्फ इंतजार
है ज़िंदगी।
कभी नज़रों में शरारत
तो कभी ह्रदय में शराफ़त
है ज़िंदगी।
कभी अलौकिक गुणगान
तो कभी पावन तीर्थधाम
है ज़िंदगी।
कभी कुशाग्र बुद्धि तो
कभी चित्त की शुद्धि
है ज़िंदगी।
कभी आशा तो कभी
निराशा है ज़िंदगी।
कभी हिज्र की घड़ी में
दिलासा है ज़िंदगी।
कभी अपनों से लगाव तो
कभी रिपुओं से टकराव है
है ज़िंदगी।
कभी रुहानियत तो
कभी हैवानियत
है ज़िंदगी।
कभी विरह-वेदन तो
कभी मधुर मिलन
है ज़िंदगी।
कभी घोर तमस तो
कभी अमृत कलश
है ज़िंदगी।
कभी प्रभु से मनुहार
तो कभी स्वयं से तकरार
है ज़िंदगी।
कभी बुराई का संहार तो
कभी दया, परोपकार
है ज़िंदगी।

नूतन कुमारी

पूर्णियाँ, बिहार

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