चाचा का कोजगरा : –
शरद पूर्णिमा की चाँदनी छम-छम बरसे,
आँगन हो उजियार,
खुशियों की झिलमिल करती, उल्लास भरे त्यौहार।
माँ के थाल में मखान सजे, संग जलेबियाँ गोल,
मीठी खुशबू उड़ती जाए, मन हो जाए डोल।
नीले गगन में रजनी चमके, जैसे फूल रात-रानी,
शरद की ठंडी हवा में कहें सब — आओ कौड़ी खेलें नवविवाहित प्राणी।
मछली झील में हिलती जाए, ताल में झूमे प्रकाश,
कोजगरा की जय-ध्वनि गूंजे, हर मन हो उल्लास।
बालक झूमे जलेबी खाकर, बोले – “वाह, मिठाई!”
चाँद मामा भी मुस्काए नीचे, देखे उनकी भलाई।
माँ लक्ष्मी के द्वारों पर हो, दीपों की कतार,
मिथिला में शुभ दिन आये, हो जगमग यह त्यौहार।
माँ लक्ष्मी की पूजा करते सब ,
धन्य धान्य से पूरित होते सबके घर द्वार ।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल
चाचा का कोजगरा – अवधेश कुमार
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